KAHAN HAI BACHPAN

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कहाँ है वह बिना बात के हँसना, और कहाँ है वह बिना बात के रोना... 
कहाँ है वह छुपना और छुपाना, और कहाँ है वह दोस्तों को पकड़ना... 
कहाँ है वह लड़ना और कहाँ है वह रूठना और मानना... 
कहाँ है वह माँ की गोद में सोना, और कहाँ है वह पापा के साथ घूमना... 

कहाँ है वह रंगो में डूबना, और कहाँ है वह पतंगे उड़ाना... 
कहाँ है वह सर्दी की धूप, और कहाँ है वह बारिश में भीगना... 
कहाँ है वह किरणों को मुठ्ठी में पकड़ना, और कहाँ है वह बुलबुले उड़ाना... 
कहाँ है वह छोटी सी गुड़िया, और कहाँ है वह क्रिकेट का बल्ला... 

कहाँ है वह साइकिल चलना, और कहाँ है वह गिर कर फिर से उठना... 
कहाँ है वह कैरम की रानी, और कहाँ है वह चैस का राजा... 
कहाँ है वह पत्तों का गुलाम, और कहाँ है वह सीढ़ी और साप... 
कहाँ है वह सच्ची सी ख़ुशी, और कहाँ है वह बचपन... 

मुड़ कर जो देखा मैंने, तो देखा अपने साये को... 
कह रहा था मुझसे, माँ-पा... कभी तो संग मेरे चलो... 
हँसकर बिताया वक़्त मैंने अपनी ही ज़िन्दगी के साथ... 
तब आया समझमें की बचपन अब भी है मेरे ही साथ... 

ज़िंदा है आज भी मुझमें, एक बच्चा कहीं पर... 
यहाँ ही है वह सच्ची सी ख़ुशी, और यहीं है वह बचपन... 
जाता ही नहीं वह कभी हमें छोड़ कर, झाँक कर देखो अपने दिल के अंदर... 
यहाँ ही है वह सच्ची सी ख़ुशी, और यहीं है वह बचपन... ad



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Amee Darji

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